सावधानी और संतुलन

 

    जागरूकता : समस्त सच्ची प्रगति के लिए अनिवार्य ।

 

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    हर एक मनुष्य के अन्दर पशु घात में रहता है जो रंचमात्र असावधानी होते ही झपटने के लिए तैयार रहता है । एकमात्र उपाय हे सतत जागरूकता ।

१८ अगस्त, १९५४

 

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    सावधानी : दुर्बलता के लिए बहुत उपयोगी क्योंकि दुर्बलता को सावधानी की जरूरत होती है । बल को उसकी जरूरत नहीं ।

 

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    सामान्य बुद्धि : यह बहुत व्यावहारिक होती है और भूलों से बचाती है पर उसमें सामना करने की क्षमता नहीं होती ।

 

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    मिताचार ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया ।

 

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    समचित्तता : अटल शान्ति और स्थिरता ।

 

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    समचित्तता की गहरी शान्ति में प्रेम शुद्ध और सतत ऐक्य के भाव में पूर्ण प्रस्फुटन में विकसित होगा ।

अक्तूबर, १९३४

 

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    धन की हानि कम महत्त्व रखती है परन्तु सन्तुलन की हानि बहुत

 

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अधिक महत्त्वपूर्ण चीज है ।

२० अगस्त, १९३५

 

    सारी शरारत सन्तुलन के अभाव से आती हे ।

 

    अत: हम सदा सर्वदा, सभी परिस्थितियों में अपना सन्तुलन बनाये रखें ।

१० अगस्त, १९५४

 

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    पूर्ण सन्तुलन : बढ़ती हुई शान्ति के लिए सबसे अधिक आवश्यक शर्तों में से एक ।

 

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